गाँव के एक कोने में बसा था एक छोटा सा घर, जहाँ रहता था दस साल का एक लड़का: छोटू। छोटू का घर बहुत सादा था - मिट्टी की दीवारें, ऊपर एक पुरानी चादर की छत, और आँगन में एक टूटी-फूटी सी चौकी। उसका परिवार बहुत अमीर नहीं था, माँ-बाप खेतों में काम करते थे और दिन-भर मेहनत के बाद जब थके हुए घर लौटते, तो छोटू उन्हें पानी देता, पैर दबाता और फिर अपनी सबसे पसंदीदा चीज़ में लग जाता: मिट्टी से कुछ बनाना। मिट्टी उसके लिए खेल का सामान नहीं थी, वो उसमें सपने गढ़ता था। उसके हाथों से कभी हाथी निकलता, कभी गाय, तो कभी छोटा सा मंदिर। लेकिन एक चीज़ जो वो बार-बार बनाता था, वो था एक छोटा मिट्टी का घर। हर बार उसे नया बनाता, थोड़ा अलग, थोड़ा बेहतर, जैसे वो किसी खास घर की तैयारी कर रहा हो।
एक बार की बात है, छोटू ने कई दिन मेहनत करके एक सुंदर मिट्टी का घर बनाया। उसकी दीवारें सीधी थीं, छत भी थी, और उसने उसमें छोटा दरवाज़ा भी जोड़ा था। वो बहुत खुश था। वो दिन-भर अपने दोस्तों को दिखाता फिरा, और कहता: “देखो, ये मेरा सपना है।” लेकिन उसी रात तेज़ बारिश आई। आंधी भी चली। सुबह जब छोटू उठा और अपने मिट्टी के घर की तरफ दौड़ा, तो देखा उसका सपना बारिश के पानी में बह चुका था। दीवारें गल चुकी थीं, छत टूट कर गिर गई थी। वो चुपचाप बैठ गया, आँसू बहने लगे। तभी उसके पापा खेत से लौटे और उसे यूँ बैठा देख पूछा: “क्या हुआ, बेटा?” छोटू ने धीरे से कहा: “मेरा घर टूट गया, बाबा…” पापा मुस्कराए और बोले: “अरे, ये तो मिट्टी का घर है बेटा, फिर बना ले। पर इस बार ऐसा बनाना कि बारिश भी हिला न पाए।” छोटू ने चौंक कर पापा की तरफ देखा। उस पल कुछ बदल गया। उसने ठान लिया, अब वो सिर्फ़ खेल-खेल में नहीं, सच्चे दिल से एक ऐसा घर बनाएगा जो ना टूटे, ना गिरे - बल्कि टिके।
अगले दिन से ही छोटू ने पढ़ाई में ध्यान लगाना शुरू कर दिया। स्कूल में उसने अपने गुरुजी से पूछा कि मज़बूत घर कैसे बनाए जाते हैं। गुरुजी पहले तो हैरान हुए, फिर मुस्कराए और उसे कुछ पुरानी किताबें दे दीं। छोटू ने वो किताबें बड़े ध्यान से पढ़ीं। वो जान गया कि घर बनाने के लिए सिर्फ़ मिट्टी नहीं, सही तकनीक, सटीक नाप, और बहुत धैर्य चाहिए। उसने सीखा कि कैसे गोबर, भूसा और पानी मिलाकर एक टिकाऊ दीवार बन सकती है। कैसे ढलवाँ छत बनाने से पानी नीचे बह जाता है और घर सूखा रहता है। उसने यह भी समझा कि घर को बनाने के लिए पहले सपना, फिर योजना, और फिर मेहनत चाहिए। अब उसका खेल पढ़ाई बन चुका था, और पढ़ाई उसका जुनून।
जब छोटू फिर से मिट्टी का घर बनाने लगा, तो गाँव के कुछ लोग हँसने लगे। “फिर से मिट्टी का घर बना रहा है? पिछली बार भी तो गिर गया था!” लेकिन छोटू ने किसी की नहीं सुनी। उसने धीरे-धीरे एक-एक ईंट की तरह अपनी योजना को जमीन पर उतारना शुरू किया। हर रोज़ वो थोड़ा-थोड़ा काम करता, कभी दीवार बनाता, कभी उसे सुखाता, कभी छत की डिजाइन सोचता। कई हफ्ते बीत गए। और फिर एक दिन, जब सूरज ढल रहा था, छोटू ने अपनी माँ को आँगन में बुलाया: “माँ, देखो।” माँ ने देखा तो उनकी आँखें भर आईं। छोटू ने जो बनाया था, वो सिर्फ़ मिट्टी का घर नहीं था, वो एक सपना था जो उसकी मेहनत से खड़ा हुआ था। दीवारें मज़बूत थीं, छत ढलवाँ थी, दरवाज़े पर एक छोटा सा दीया जल रहा था, और अंदर कोनों में मिट्टी के बनाए फर्नीचर रखे हुए थे।
कुछ ही दिनों में स्कूल में एक विज्ञान प्रदर्शनी हुई। बच्चे अपने-अपने प्रोजेक्ट लाए - कोई सौर ऊर्जा वाला पंखा, कोई पानी से चलने वाली गाड़ी। छोटू अपना मिट्टी का घर ले आया। शुरुआत में कुछ लोग चुप थे, पर जैसे ही उन्होंने घर को करीब से देखा, सब दंग रह गए। एक जज ने पूछा: “ये किसने बनाया?” छोटू ने हाथ उठाया। “मैंने, सर,” उसने कहा और फिर पूरी कहानी बताई - कैसे उसका पहला घर टूटा, कैसे उसने हार नहीं मानी, कैसे सीखा, और फिर से एक बेहतर घर बनाया। सबने तालियाँ बजाईं। जज बोले: “तुमने जो बनाया है, वो एक कला है, और तुम्हारा जज़्बा इससे भी सुंदर है।” छोटू को पहला इनाम मिला।
अब गाँव के वही लोग जो उस पर हँसते थे, उसके पास आने लगे। बोले: “बेटा, हमें भी सिखा दो। हम भी ऐसा घर बनाना चाहते हैं।” छोटू ने सबको सिखाया - कैसे मिट्टी को तैयार करना है, कौन-सा अनुपात रखना है, कब सुखाना है, और कब रंगाई करनी है। धीरे-धीरे, पूरे गाँव में सुंदर-सुंदर मिट्टी के घर बनने लगे। हर घर के सामने एक छोटा सा तख्ती लगी थी, जिस पर लिखा था: “छोटू के सपनों का घर” गाँव अब सिर्फ़ एक जगह नहीं, एक सोच बन चुका था - जहाँ मेहनत, लगन और सीखने की चाह हो, वहाँ से कुछ भी शुरू किया जा सकता है।
मोरल सीख:
जिंदगी में गिरना बुरा नहीं है, पर गिरकर उठना आना चाहिए। अगर आपका सपना सच्चा है, तो मिट्टी भी सोना बन सकती है। छोटू ने मिट्टी से घर नहीं, हिम्मत से सपना खड़ा किया।
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