हाथी और उसके सच्चे दोस्त
हरियापुर गांव के पास एक बहुत बड़ा और हरा-भरा जंगल था। उस जंगल में हर तरह के जानवर रहते थे—छोटे-छोटे खरगोश, शरारती बंदर, चालाक लोमड़ियाँ, उछलते मेंढक, सुंदर हिरण और रंग-बिरंगे पक्षी। सब जानवर मिल-जुलकर रहते थे, खेलते थे, बातें करते थे और खुश रहते थे। लेकिन एक जानवर ऐसा था जो बहुत अकेला था—एक बड़ा सा हाथी।
हाथी कुछ समय पहले ही इस जंगल में आया था। वह दिखने में बहुत बड़ा और भारी था, लेकिन उसका दिल बहुत ही नरम और दयालु था। वह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता था। वह बस यही चाहता था कि उसके भी कुछ दोस्त बनें, जिनके साथ वह बातें कर सके, हँस सके और अपना अकेलापन बाँट सके। पर जंगल के बाकी जानवर उससे थोड़ा डरते थे, क्योंकि उन्होंने पहले कभी इतना बड़ा जानवर नहीं देखा था।
एक सुबह हाथी ने ठान लिया कि वह आज किसी न किसी को अपना दोस्त बनाकर ही लौटेगा। वह पूरे उत्साह के साथ जंगल में निकल पड़ा। सबसे पहले उसे कुछ खरगोश घास में खेलते हुए दिखे। वह धीरे-धीरे उनके पास गया ताकि वे डरें नहीं। उसने मुस्कुराकर कहा, “नमस्ते दोस्तों! क्या मैं भी तुम्हारे साथ खेल सकता हूँ? क्या हम दोस्त बन सकते हैं?”
खरगोश थोड़े घबरा गए और फिर उनमें से एक बोला, “हाथी भैया, आप बहुत बड़े हैं। अगर आप हमारे घर में आ गए तो वह टूट जाएगा। और अगर खेलते वक्त आप गलती से हम पर पैर रख दें तो हमें चोट लग सकती है। माफ करना, हम आपके दोस्त नहीं बन सकते।” यह सुनकर हाथी का चेहरा उतर गया, लेकिन उसने हार नहीं मानी और आगे बढ़ गया।
कुछ ही दूर पर उसे कुछ बंदर पेड़ पर झूलते हुए मिले। हाथी ने उन्हें देखा और कहा, “क्या मैं भी तुम्हारे साथ खेल सकता हूँ?” एक बंदर ने हँसते हुए कहा, “तुम तो पेड़ पर चढ़ ही नहीं सकते। हम तो दिनभर पेड़ों पर झूलते हैं, उछलते हैं। तुम्हारे लिए ये सब करना मुश्किल होगा। दोस्ती का क्या फायदा जब हम एक साथ खेल ही न सकें?” हाथी थोड़ा उदास हुआ, लेकिन उसने सोचा शायद कोई और उसका दोस्त बन जाए।
थोड़ी देर में उसे एक तालाब के किनारे मेंढक मिला। वह पास गया और बोला, “नमस्ते! क्या हम दोस्त बन सकते हैं?” मेंढक ने हाथी को ऊपर से नीचे देखा और कहा, “तुम बहुत भारी हो। अगर तुम तालाब के पास आए तो पानी ही बाहर छलक जाएगा। और तुम मेरी तरह उछल-कूद भी नहीं कर सकते। माफ करना, हम दोस्त नहीं बन सकते।” अब हाथी और ज्यादा उदास हो गया। उसके दिल में एक टीस सी उठी। उसे लगने लगा कि वह कभी किसी का दोस्त नहीं बन पाएगा।
लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। वह आगे बढ़ा और कुछ लोमड़ियों से मिला। उन्होंने भी कहा कि वह बहुत बड़ा है और उनके साथ मेल नहीं खाता। अब हाथी थक चुका था। वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया और उसकी आंखों से आँसू बहने लगे। “क्या इस जंगल में कोई भी मेरी अच्छाई नहीं देख सकता?” उसने खुद से पूछा। “सबको बस मेरा आकार ही क्यों दिखाई देता है?”
अगले दिन की बात है। जंगल में अफरा-तफरी मची हुई थी। सारे जानवर इधर-उधर भाग रहे थे, डर के मारे कांप रहे थे। हाथी को कुछ समझ नहीं आया। उसने दौड़ते हुए एक हिरण को रोका और पूछा, “क्या हुआ? सब इतने डरे हुए क्यों हैं?”
हिरण हांफते हुए बोला, “एक भयानक बाघ जंगल में आ गया है। वह सभी जानवरों पर हमला कर रहा है। वह बहुत गुस्से में है और किसी की नहीं सुन रहा।”
यह सुनकर हाथी ने चारों ओर देखा। वही खरगोश, बंदर, मेंढक और लोमड़ियाँ जो उसे दोस्त नहीं बनाना चाहते थे—अब सभी डरे हुए एक कोने में छुपे हुए थे। हाथी का दिल पसीज गया। उसने सोचा, “अगर ये मेरे दोस्त नहीं भी हैं, फिर भी ये सभी मेरी मदद के लायक हैं। अगर मैं कुछ कर सकता हूँ तो मुझे करना चाहिए।”
हाथी ने हिम्मत दिखाई और बाघ की तरफ बढ़ गया। जब वह बाघ के पास पहुँचा, तो उसने गहरी आवाज़ में कहा, “बाघ भाई, कृपया मेरे दोस्तों को नुकसान मत पहुँचाओ। हम सब यहां मिल-जुलकर रहना चाहते हैं। अगर तुम्हें कुछ चाहिए तो हम बात करके हल निकाल सकते हैं।”
बाघ ने गुस्से में दहाड़ते हुए कहा, “हट जा मेरे रास्ते से! मैं किसी की नहीं सुनता।” हाथी ने फिर भी शांत रहते हुए कहा, “मैं तुम्हें किसी को नुकसान नहीं पहुँचाने दूंगा।” बाघ अब और गुस्से में आ गया और उसने हाथी पर झपटने की कोशिश की। लेकिन हाथी तैयार था। उसने अपनी मजबूत सूंड और पैरों की मदद से बाघ को ज़ोर से धकेला। बाघ ज़मीन पर गिरा और डर के मारे वहां से भाग गया।
जंगल में छुपे सारे जानवर यह देख रहे थे। जब बाघ भाग गया, तो वे धीरे-धीरे बाहर आए। सबने तालियाँ बजाईं और हाथी की जय-जयकार की। खरगोश ने आकर कहा, “हाथी भैया, आपने तो हमारी जान बचा ली!” बंदर बोला, “हमें माफ कर दो, हम गलत थे।” मेंढक भी बोला, “तुम हमारे सच्चे हीरो हो!” लोमड़ियाँ बोलीं, “आज हमें समझ आया कि असली दोस्त कैसा होता है।”
हाथी मुस्कुराया और बोला, “कोई बात नहीं। सच्चा दोस्त वही होता है जो मुश्किल समय में साथ दे, न कि वो जो सिर्फ खेल में साथ दे।” उस दिन से पूरा जंगल हाथी का सबसे अच्छा दोस्त बन गया। अब कोई उसे बड़ा या अजीब नहीं कहता था। सबने सीखा कि दोस्ती दिल से होती है, आकार या शक्ल से नहीं।
निष्कर्ष:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि सच्ची दोस्ती किसी के आकार, रूप या ताकत पर नहीं, बल्कि उसके दिल और भावनाओं पर निर्भर करती है। अक्सर हम लोगों को उनके बाहरी रूप या अलग होने की वजह से अपनाने से कतराते हैं, लेकिन जब मुश्किल समय आता है, तब असली इंसानियत और दोस्ती की पहचान होती है। हाथी ने भले ही पहले सबका साथ न पाया हो, लेकिन उसने किसी से बदला नहीं लिया, बल्कि अपनी अच्छाई और बहादुरी से सबका दिल जीत लिया। इसलिए हमें भी हर किसी को दिल से अपनाना चाहिए और दूसरों की अच्छाइयों को पहचानना चाहिए, क्योंकि सच्चे दोस्त वही होते हैं जो हर हाल में साथ निभाते हैं।
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