गुम्फा का रहस्य
हरिपुर एक छोटा लेकिन बेहद खूबसूरत गाँव था, जो ऊँची-नीची पहाड़ियों और घने जंगलों से घिरा हुआ था। यहाँ के लोग सीधे-सादे थे, और जीवन शांतिपूर्ण था। लेकिन इस गाँव के एक कोने में, पहाड़ियों की ओट में एक पुरानी गुफा थी, जिसे लोग "काली गुफा" कहते थे। यह गुफा वर्षों से बंद थी, और इसके बारे में अजीब-अजीब कहानियाँ प्रचलित थीं। कोई कहता था कि वहाँ भूत रहते हैं, कोई कहता था कि वह श्रापित है, और कुछ का मानना था कि वहाँ किसी पुराने राजा का खज़ाना छिपा है। डर और रहस्य की वजह से वहाँ कोई नहीं जाता था।
लेकिन अर्जुन, जो गाँव का एक बारह साल का लड़का था, बाकी बच्चों से अलग था। वह बहुत ही जिज्ञासु और साहसी था। उसे हर रहस्य की तह तक जाने की आदत थी। जब बाकी बच्चे खेलते, अर्जुन अक्सर पहाड़ियों पर चढ़ता, पेड़ों के बीच से रास्ते खोजता, और सबसे ज़्यादा समय गुफा के आस-पास बिताता। वह घंटों बैठकर उस गुफा को देखता रहता, जैसे उसकी दीवारों से कोई पुरानी आवाज़ उसे बुला रही हो। अर्जुन को डर नहीं लगता था, बल्कि उसकी आँखों में उस गुफा को जानने की गहरी चाह थी।
एक दिन ऐसा आया जब गाँव में मेला लगा हुआ था। ढोल बज रहे थे, मिठाइयाँ बिक रही थीं, और सभी लोग रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर मेले में मग्न थे। अर्जुन ने देखा कि अब उसके पास मौका है, जब कोई उसे रोकने वाला नहीं है। उसने चुपचाप अपना एक छोटा सा थैला तैयार किया, जिसमें उसने एक टॉर्च, रोटी का टुकड़ा, एक छोटी पानी की बोतल और भगवान की छोटी सी मूर्ति रखी। उसकी माँ ने वह मूर्ति उसे हमेशा देते हुए कहा था, “जहाँ डर लगे, वहाँ इसे पकड़ लेना।”
गुफा के पास पहुँचते ही अर्जुन की साँसे तेज़ चलने लगीं। सूरज पहाड़ियों के पीछे छिप रहा था और चारों तरफ एक हल्का सुनहरा अंधेरा छा गया था। उसने पत्थरों को हटाया, जो गुफा के मुंह को आंशिक रूप से ढके हुए थे, और धीरे-धीरे अंदर कदम रखा। गुफा के अंदर घना अंधेरा था, और वहाँ की हवा ठंडी और भारी लग रही थी। टॉर्च की हल्की रोशनी में दीवारें चमक रही थीं। अर्जुन हर कदम पर बहुत ध्यान से आगे बढ़ रहा था, उसके जूते की आवाज़ गुफा में गूंज रही थी।
जैसे-जैसे वह भीतर गया, गुफा की दीवारों पर बने चित्र उसकी नज़रों के सामने आने लगे। ये चित्र बहुत पुराने थे, लेकिन अभी भी साफ दिखाई देते थे। एक चित्र में लोग युद्ध करते हुए थे, एक में कोई राजा बैठा था और लोग उसकी पूजा कर रहे थे। एक चित्र में एक सोने की मूर्ति को छिपाते हुए सैनिक दिखाए गए थे। अर्जुन को अब समझ आने लगा था कि ये गुफा किसी समय एक शाही स्थान रही होगी। उसके रोम-रोम में रोमांच भर गया।
गुफा के भीतर एक छोटा सा कक्ष था, जहाँ पत्थर की एक वेदी बनी हुई थी। उस वेदी पर एक सुनहरी मूर्ति रखी थी — एक योद्धा राजा की, जिसके चेहरे पर गर्व और ताकत साफ झलक रही थी। अर्जुन ने टॉर्च की रोशनी उस पर डाली और वह चमक उठी। तभी अचानक एक तेज़ ठंडी हवा का झोंका आया और टॉर्च बंद हो गई। चारों ओर अंधेरा और सन्नाटा छा गया। अर्जुन डर गया, लेकिन उसने खुद को संभाला। उसे अपनी माँ की दी हुई भगवान की मूर्ति याद आई। उसने वह मूर्ति जेब से निकाली और आँखें बंद कर प्रार्थना करने लगा।
कुछ ही पलों में, बिना किसी छेड़छाड़ के, टॉर्च फिर से जल उठी। अर्जुन ने चारों ओर देखा, सब वैसा ही था, लेकिन अब उसकी समझ में आ गया कि यह केवल खज़ाने की जगह नहीं है, बल्कि यह एक पवित्र स्थान है। उसने मूर्ति को छूने की बजाय उसे वहीं छोड़ देना बेहतर समझा और धीरे-धीरे गुफा से बाहर निकल गया।
बाहर निकलते समय आसमान में तारे चमकने लगे थे। अंधेरा छा चुका था, लेकिन अर्जुन के चेहरे पर डर नहीं, बल्कि एक अलग सी शांति और संतोष था। उसने कुछ भी उठाया नहीं, लेकिन बहुत कुछ लेकर लौटा – साहस, अनुभव और एक सच्ची कहानी।
गाँव लौटकर जब अर्जुन ने अपनी बात सबको बताई, तो पहले किसी ने यकीन नहीं किया। लेकिन जब उसने गुफा के अंदर की चित्रकारी, वेदी और मूर्ति के बारे में विस्तार से बताया, तो गाँव के कुछ बुज़ुर्गों की आँखें भर आईं। उन्होंने बताया कि यह गुफा किसी प्राचीन योद्धा राजा की समाधि थी, जिसे काल के साथ सब भूल गए थे।
अब गाँव वाले उसे “काली गुफा” नहीं कहते। अब वह “अर्जुन की गुफा” के नाम से जानी जाती है। और अर्जुन? वह गाँव का नायक बन गया — एक छोटा लड़का, जिसने अपने साहस से इतिहास को फिर से ज़िंदा किया।
समाप्त।
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